डॉ. अरशद सम्राट
प्रधानाचार्य
सम्राट इंटर कॉलेज
मुज़फ्फरनगर
अल्लाह ने माह ए रमजान में रोजा रखने का हुक्म दिया ताकि हर मोमिन को गरीबी और तंगदस्ती में मुब्तला और भूक-प्यास से बिलकते इंसानों के दर्द व गम का एहसास हो जाए, दिल व दिमाग में जरूरतमंद मुसलामनों की किफालत का जज्बा-ए-सादिक पैदा हो जाए और खुसूसी तौर पर मुसलमान रमजान की इबादत की बदौलत अपने आप को पहले से ज्यादा अल्लाह तआला के करीब महसूस करता है। गरज कि महीने भर की इस मश्क का मकसदे खास भी यही है कि मुसलमान साल भर के बाकी ग्यारह महीने भी अल्लाह तआला से डरते हुए जिंदगी गुजारे, जिक्र व फिक्र, इबादत व रियाजत, कुरआन की तिलावत और यादे इलाही में खुद को लगा दे|
रमजान एक ऐसा महीना है जिसमें हर दिन और हर वक्त इबादत होती है। रोजा इबादत इफ्तार इबादत इफ्तार के बाद तरावीह का इंतजार करना इबादत, तरावीह पढ़कर सहरी के इंतजार में सोना इबादत गरज कि हर पल खुदा की शान नजर आती है। कुरआन शरीफ में सिर्फ रमजान शरीफ ही का नाम लेकर इसकी फजीलत को बयान किया गया है रमज़ान के अलावा और किसी महीना को इतनी नेमत नहीं बख्सा गया है।इसमें एक रात शबे कद्र है जो हजार महीनों से बेहतर है। रमजान में इब्लीस और दूसरे शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है (जो लोग इसके बावजूद भी जो गुनाह करते हैं वह नफ्से अमारा की वजह से करते हैं) (बुखारी) रमजान में नफिल का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब 70 गुना मिलता है। रमजानुल मुबारक में सहरी और इफ्तार के समय दुआ कुबूल होती है इन दोनों वक़्त में अल्लाह के सामने रो रोकर ज्यादा से ज्यादा दुआ मांगा करे।
अल्लाह पाक ने सारी आसमानी किताबें रमज़ान के महीने में ही उतारी। कुरान पाक लौहे महफ़ूज से दुनिया वाले आसमान पर पूरा का पूरा इसी महीने में उतारा गया और वहां से 23 साल में हालात के हिसाब से थोड़ा-थोड़ा नाजिल किया गया। हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के सहीफे इसी महीने की 3 तारीख को उतारे गए।
हजरत दाऊद अलैहिस्सालम को ज़ुबूर (कुरान जैसी किताब) 18 या 21 रमजान को मिली और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को तौरेत 6 रमजान को अता हुई और हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को इन्जील 12 या 13 रमज़ान के मिली। तो सोचने वाली बात है कि अल्लाह को रमज़ान का महीना कितना पसंद होगा कि बड़े-बड़े काम इसी महीने के किए। इसलिए हम भी इसकी एहमियत को समझें और अल्लाह की इबादत करके इसका पूरा फायदा उठाएं।
अल्लाह ने सभी आसमानी किताबें जिसमें कुरान शरीफ भी शामिल है, रमज़ान के पाक महीने में उतारी गई। हजरत जिबराइल अलैहिस्सलाम हर साल रमजान में पूरा कुरान हजरत मोहम्मद सललल्लाहू अलैहिवसल्लम को सुनाते थे। इससे ये समझ में आता है कि इस महीने में कुरान शरीफ पढ़ने, सुनने-सुनाने की कितनी एहमियत और सवाब है। इस महीने में कम से कम 1 कुरान शरीफ पूरा पढ़ें।
हजरत मोहम्मद सल्लललाहू अलैहीवसल्लम ने फरमाया- रमज़ान सब्र का महीना है यानी रोज़ा रखने में कुछ तकलीफ हो तो इस बर्दाश्त करें। फिर आपने कहा कि रमज़ान गम बांटने का महीना है। यानी गरीबों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। अगर 10 चीजें अपने रोजा इफतार के लिए लाए हैं तो 2-4 गरीबों के लिए भी लाएं।असल तो ये है कि अपने से अच्छा गरीबों के लिए न ला पाएं तो कम से कम अपने जैसा ही ले पाएं। अपने इफतार व सहर के खाने में गरीबों का भी ध्यान रखें। अगर आपका पड़ोसी गरीब है तो उसका खासतौर पर ध्यान रखें कि कहीं ऐसा न हो कि हम तो खूब पेट भर कर खा रहे हैं और हमारा पड़ोसी थोड़ा खाकर सो रहा है।
रमज़ानुल मुबारक की फ़ज़ीलत व बरकत