आखिर कब खुलेंगे शिक्षण संस्थान,सरकार उठाए सख्त कदम:फ़ैसल काज़मी

आज पूरी दुनिया इतिहास की सबसे बड़ी महामारी कोरोना वायरस से पीड़ित है। जिसके चलते इस वायरस से लाखों लोग संक्रमित हुए हैं वहीं दूसरी ओर कई हजार मौतें भी हुई जिसका सभी लोगों को बहुत दुख है। इसके बचाव के लिए सभी देश अपने- अपने स्तर से इसको रोकने के प्रयास भी कर रहे हैं। जिसमें एक प्रयास लोकडाउन है। जहां देखने में आया है कि लोकडाउन के चलते पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर फर्क पड़ेगा।
जिसमे एक दूसरी कड़ी भी जुड़ी हुई है वह हैं शिक्षण संस्थान। सभी अभिभावकों ने सरकार से अपील की, कि बच्चों की 3 महीने की फीस पूर्णतया माफ की जाए या उसमें कोई छूट दी जाए।और जहां तक बात अभिभावकों की है, वह भी अपनी जगह सही हैं। अभी काफी दिनों से लोगों के काम नहीं है और आगे भी ऐसी ही स्थिति बनती दिख रही है लेकिन कहीं ना कहीं सवाल उठता है उन छोटे स्कूलों का जो समाज में शिक्षा के क्षेत्र में रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं जिन्होंने कई वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र  में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
जहां एक तरफ बड़े-बड़े सीबीएसई, एनसीईआरटी तथा आईसीएसई आदि से संबंधित स्कूल है जिनकी फीस हजारों लाखों में होती है, उन पर शायद कोई फर्क ना पड़े, क्योंकि वह अपनी फीस बैंकों के माध्यम से या तिमाही के माध्यम से एक साल की फीस परीक्षाएं होने से पहले ही जमा करवा लेते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसे छोटे स्कूल भी हैं जहां तीन महीने की एडवांस फीस तो दूर की बात महीने की सभी बच्चों की फीस भी पूरी नहीं आ पाती तथा अंत में यह देखा जाता है की बच्चे ने पूरे साल शिक्षा ग्रहण की और अंत में आकर यह परिणाम निकलता है कि उन सभी लोकल स्कूलों की फीस बड़ी मात्रा में रुक जाती है जिसका अगले वर्ष भी न आने का कोई रास्ता नही होता। ऐसे में लोकडाउन से पहले ही यह आदेश आ गया कि सभी शिक्षण संस्थान 22 मार्च तक बंद रहेंगे और उसी समय सभी छोटे स्कूलों के परीक्षाएं शुरू होने वाली थी वहीं दूसरी और बड़े स्कूलों में फरवरी माह तक या 10 मार्च तक परीक्षाएं संपूर्ण हो चुकी थी।
जिन स्कूलों की परीक्षाएं पूरी हो गई वहां बजट का तो कोई सवाल ही नहीं उठता बात आती है उन छोटे स्कूलों की जिनका सारा वर्ष का दारोमदार उस मार्च के महीने में था ऐसे में अचानक से हुए लोकडाउन से उन सभी स्कूलों की आर्थिक स्थिति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और ऐसे में अभिभावकों का यह कहना कि अगले तीन महीने की फीस माफ हो बात ठीक है, लेकिन इसके विपरीत अभिभावक या सरकार या प्रशासन स्कूल वालों की उस पूरे वर्ष की मेहनत,स्कूल के स्टाफ की फरवरी तथा मार्च माह के रुके हुए वेतन तथा पिछले वर्ष की रुकी हुई फीस के बारे में भी कोई योजना बनाएंगे। क्या किसी अभिभावक ने स्कूल वालों को फ़ोन किया कि हमारे ऊपर कितनी फीस बकाया है। शायद नहीं। और न ही कोई योजना भी बन पाएगी क्योंकि उस ओर तो किसी का ध्यान गया ही नही इस लोकडाउन के चक्कर में। अभिभावक को तो ये लगता है कि सभी स्कूल एक ही श्रेणी में आते हैं उनको क्या फर्क पड़ेगा अगर फीस ना भी दें तो।
फ़ैसल काज़मी 
अध्यक्ष
ब्राइट फ्यूचर वेलफेयर सोसाइटी