पढ़ी अपने ऐबों पर जो नज़र। तो निगाह में कोई बुरा न रहा।

फला इंसान अच्छा है, फला बुरा है, फला झूठा है, फला मुनाफ़िक़ है, फला बदकार है, फला मक्कार है, वगैराह वगैराह।


यह है हमारे अक्सर एक दूसरें के लिए इस्तिमाल किए जाने वाले कुछ क़लमात, कुछ आप की मौजूदगी में और कुछ गैर मैजूदगी में। किस्सा मुख्तसर है के बाआज़ अवकात तो आप को पता तक नही होता और आप के किरदार तक कि धज्जिया उड़ा दी जाती है।


हम लोग हर वक्त अपने हाथ मे एक पैमाना लिए घूमते रहते है जिससे हर किसी की अच्छी या बुराई की पैमाइश की जाती है, अगर कोई इंसान हमारी उससे वाबस्ता तवक्कोआत पर पूरा नही उतरता तो हम फौरन उसपर झूठे, मक्कार, बदकार, मुनाफ़िक़ वगैराह होने की मोहर लगा देते है, ऐसा लगता है के या तो गैब का इल्म है हमारे पास, या फिर हमें इलहाम हो जाता है के कौन अच्छा है या बुरा।


किसी पर भी कोई गलत बोहतान लगाने से या सुनी सुनाई पर किसी को बदनाम करने से बचो। ये इंतिहाइ घटिया फ़अल है जो हम लोगों से जाने अनजाने सर्ज़द होता रहता है।


अगर हम खुद बहुत नैक, इबादत गुज़ार और पारसा भी हुए तबभी हमें ऐसा करने का कोई हक़ नही है, और अगर कभी ऐसा करने लगो तो एक नज़र अपने किरदार के आईने पर भी डाल लेना यक़ीन जानो बहुत बड़े गुनाह से बच जाओगे।


अगर आप का ज़मीर ज़िंदा हुआ तो जो बुराई आप दूसरों में ढूंढते हो, उन को जब खुद में तलाश करोगे तो ये भी मुमकिन है के खुद में ज़ियादा मिक़दार में पाओ, फिर शायद आप की सोच बदल जाए। 


पढ़ी अपने ऐबों पर जो नज़र।
तो निगाह में कोई बुरा न रहा।