हमारा सूर्य और ग्रहण
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सूर्य आकाशगंगा का एक तारा है। हमारे सूरज का एक परिवार है जिसमें नौ ग्रह हैं इनके नाम हैं बुध,शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस(अरुण) ,नेपच्यून (वरुण) और प्लेटो(यम)। इनमें से बाद के 3 ग्रहों का पता पिछले 200 साल में लगा है और प्लेटो को तो 1930 में खोजा जा सका है। हमारे पुराने ज्योतिषियों को इन 3 ग्रहों के बारे में 200 साल पहले कोई जानकारी नहीं थी।
हमारे सूरज को समझने के लिए पहले हमें अपनी पृथ्वी का आकार प्रकार जानना होगा। हमारी पृथ्वी का व्यास करीब 12700 किलोमीटर है और इसका भार लगभग 66,00,00,00,00, 000अरब टन है। लेकिन सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास से 109 गुना अधिक है सूर्य इतना बड़ा है कि इसमें हमारी पृथ्वी जैसे 13,00,000 पिंड समा सकते हैं। सूर्य पृथ्वी से 3,30,000 गुना भारी है।
हमारे सौरमंडल में नौ ग्रह हैं करीब 60 उपग्रह, हजारों छुद्र ग्रह, धूमकेतु एवं उल्कापिंड भी हैं। सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री सेंटीग्रेड है परंतु इसके केंद्र का भाग का तापमान लगभग डेढ़ करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड है सूर्य के इसी केंद्र भाग में हाइड्रोजन गैस हिलियम में बदलती रहती है।
सूर्य के अंदर लगातार विस्फोट होते रहते हैं जिससे सूरज की रोशनी और ऊर्जा हम तक पहुंचती है सूर्य का निर्माण लगभग 5 अरब साल पहले हुआ था और यह सारे ग्रह भी तभी बने थे। सूर्य में इतना इंधन मौजूद है कि आगे करीब 6 अरब वर्षों में यह अपने संपूर्ण द्रव्य का केवल 12% ही खर्च कर पाएगा।
सूर्य की सतह पर कुछ स्थानों पर तापमान कम ज्यादा है इसलिए यह क्षेत्र काले दिखाई देते हैं सूरज के यह कलंक लाखों किलोमीटर लंबे चौड़े हैं। सूर्य में हमेशा उथल-पुथल मची रहती है सूर्य की सतह पर उची उची ज्वाँआएं उठती रहती हैं। ग्रहण के समय जब चंद्र सूर्य को ढक लेता है तो इन ज्वालाओं को देखा जा सकता है।
सूरज अपनी उर्जा को सब दिशाओं में फेंकता रहती है। इनमें से बहुत थोड़ी ऊर्जा पर प्रकाश व अन्य किरणों के रूप में हमारी धरती पर पहुंचती है जो हमारे जीवन के लिए पर्याप्त है यदि पृथ्वी सूर्य के अधिक नजदीक होती तो हमारा जीवन असंभव हो जाता और यदि बहुत दूर होती तो भी जीवन संभव नहीं होता इसी के कारण पृथ्वी पर हमारा जीवन संभव है और इसीलिए सूरज हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्व का है।
अन्यथा यह सूर्य आकाशगंगा मंदाकिनी का एक सामान्य तारा है। आकाशगंगा में दूसरे कई तारे हमारे सूर्य से कई गुना बड़े हैं हमारा यह सूरज आकाशगंगा के केंद्र में नहीं है, आकाश में भी यह स्थिर नहीं है। सूर्य, ग्रहों तथा उपग्रहों आदि को साथ लेकर यह प्रति सेकंड 220 किलोमीटर की वेग से आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। हकीकत यह है कि मानव के अस्तित्व के संपूर्ण इतिहास में सूरज ने आकाशगंगा का अभी एक पूरा चक्कर भी नहीं लगाया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सूरज, चांद, राहु और केतु कोई ग्रह नहीं हैं। सूरज एक तारा है, चांद पृथ्वी का उपग्रह है और राहु और केतु दो काल्पनिक बिंदु हैं जिनका प्रयोग ज्योतिष में किया जाता है। हकीकत में हमारे सौरमंडल में राहु केतु का कोई स्थान नहीं है। यह केवल काल्पनिक बिंदु मात्र हैं।
जहां तक ग्रहण का संबंध है सूरज अपने सारे ग्रहों को साथ लेकर एक साथ घूमता है तो सूरज चांद और पृथ्वी एक लाइन में आ जाते हैं जब इसी घूमने के दौरान चंद्रमा पृथ्वी के कुछ भाग पर सूरज की रोशनी को आने से रोक लेता है तो इसे सूर्यग्रहण कहा जाता है और जब घूमते घूमते सूरज और चांद के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी सूरज की रोशनी को चांद पर पड़ने से रोक लेती है जिससे उसकी सतह काली दिखाई देने लगती है। इसे चंद्र ग्रहण कहते हैं। यह ग्रहण पूर्ण ग्रहण और आंशिक ग्रहण भी हो सकते हैं।
आज का सूर्य ग्रहण हमारे देश के कई सूबों में और दुनिया के कई देशों में दिखाई दिया। हमारे देश में कुछ समय यह पूर्ण ग्रहण था तो कुछ ही समय आंशिक ग्रहण। इसी तरह दुनिया के अंदर कुछ देशों में यह आंशिक था तो कुछ देशों में पूर्ण ग्रहण था। इस प्रकार हमने देखा की सूर्य और चंद्र ग्रहण को लेकर आज भी हमारे समाज में कई गलत धारणाएं और अंधविश्वास छाये हुए हैं,जैसे कुछ लोगों का कहना है कि सूरज ग्रहण या चंद्र ग्रहण राहु केतु के कारण होता है जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।
हकीकत यह है कि हमारे ब्रह्मांड में या हमारे सौरमंडल में राहु और केतु नाम के कोई ग्रह नहीं है और ना सूरज ग्रह है और ना चांद ग्रह है। सूरज एक तारा है और चांद एक उपग्रह है।हमारे इस लेख को लिखने का कारण सिर्फ और सिर्फ यह था कि हम लोग वैज्ञानिक और भौतिकी के तथ्यों को जाने और अपने बच्चों को भी,अपने आस पड़ोसियों को भी, अपने यारों रिश्तेदारों को भी इसी वैज्ञानिक रोशनी से अवगत कराएं ताकि वह पूजा और पंडागिरी करने वालों और समाज में फैले अंधविश्वास और धर्मांधता के जाल से निकल सकें और सूरज और ग्रहण के वास्तविक तथ्यों को जान सकें। (यह सारे आंकड़े गुणाकर मुले की किताब सौरमंडल से लिए गए हैं।)